दुश्वार काम था ग़म को समेटना

दुश्वार काम था ग़म को समेटना

दुश्वार काम था ग़म को समेटना

दुश्वार काम था ग़म को समेटना
मैं ख़ुद को बांधने में कई बार खुल गया


Dushvaar kaam tha gam ko sametana
Main khud ko baandhane mein kaee baar khul gaya