ख़त जो लिखा मैनें इंसानियत के पते पर

ख़त जो लिखा मैनें इंसानियत के पते पर

ख़त जो लिखा मैनें इंसानियत के पते पर!
डाकिया ही चल बसा शहर ढूंढ़ते ढूंढ़ते!


Khat jo likha mainen insaaniyat ke pate par!
Daakiya hee chal basa shahar dhoondhate dhoondhate!