रोज़ रोज़ जलते हैं फिर भी खाक़ नहीं हुए

रोज़ रोज़ जलते हैं फिर भी खाक़ नहीं हुए

रोज़ रोज़ जलते हैं फिर भी खाक़ नहीं हुए...
अजीब हैं कुछ ख़्वाब भी बुझ कर भी राख़ न हुए...!!


Roz roz jalate hain phir bhee khaaq nahin hue...
Ajeeb hain kuchh khvaab bhee bujh kar bhee raakh na hue...!!