नक़ाब क्या छुपाएगा शबाब ए हुस्न को

नक़ाब क्या छुपाएगा शबाब ए हुस्न को

नक़ाब क्या छुपाएगा शबाब-ए-हुस्न को,
निगाह-ए-इश्क तो पत्थर भी चीर देती है..


Naqaab kya chhupaega shabaab-e-husn ko,
Nigaah-e-ishk to patthar bhee cheer detee hai..