कभी हो मुखातिब तो कहूँ क्या मर्ज़ है मेरा

कभी हो मुखातिब तो कहूँ क्या मर्ज़ है मेरा

कभी हो मुखातिब तो कहूँ क्या मर्ज़ है मेरा

कभी हो मुखातिब तो कहूँ क्या मर्ज़ है मेरा,
अब तुम दूर से पूछोगे तो ख़ैरियत ही कहेंगे !!


Kabhi ho mukhatib to kahu kya marz hai mera,
Ab tum dur se puchoge to Khairiyat hi kahenge !!