अनकहे शब्दों के बोझ से थक जाता हूँ कभी

अनकहे शब्दों के बोझ से थक जाता हूँ कभी

अनकहे शब्दों के बोझ से थक जाता हूँ कभी

अनकहे शब्दों के बोझ से थक जाता हूँ कभी,
पता नही चुप रहना समझदारी हैं या मजबूरी ll


Anakahe shabdon ke bojh se thak jaata hoon kabhee,
Pata nahee chup rahana samajhadaaree hain ya majabooree ll