सोंचती हूँ कभी कभी यूँ ही

सोंचती हूँ कभी कभी यूँ ही

सोंचती हूँ कभी कभी यूँ ही...
आख़िर हर्ज क्या था उसे मनाने में...!!


Sonchatee hoon kabhee kabhee yoon hee...
Aakhir harj kya tha use manaane mein...!!