वाक़िये तो अनगिनत हैं मेरी ज़िंदगी के

वाक़िये तो अनगिनत हैं मेरी ज़िंदगी के

वाक़िये तो अनगिनत हैं मेरी ज़िंदगी के,
सोच रही हूँ किताब लिखूँ या हिसाब लिखूँ...!


Vaaqiye to anaginat hain meree zindagee ke,
Soch rahee hoon kitaab likhoon ya hisaab likhoon...!