मुझ पर सितम ढहा गए मेरी ही ग़ज़ल के शेर

मुझ पर सितम ढहा गए मेरी ही ग़ज़ल के शेर

मुझ पर सितम ढहा गए मेरी ही ग़ज़ल के शेर,
पढ़-पढ़ के खो रहे हैं वो गैर के ख्याल में।


Mujh Par Sitam Dhha Gaye Meri Hi Ghazal Ke Sher,
Parh-Parh Ke Kho Rahe Hain Woh Ghair Ke Khayal Mein.