ज़ख़्म ज़ख़्म होती है रोज़ अपनी ख़ुद्दारी

ज़ख़्म ज़ख़्म होती है रोज़ अपनी ख़ुद्दारी

ज़ख़्म ज़ख़्म होती है रोज़ अपनी ख़ुद्दारी

ज़ख़्म-ज़ख़्म होती है रोज़ अपनी ख़ुद्दारी,
रोज़ ज़िंदगी हमसे तू-तड़ाक करती है...!


Zakhm-zakhm hotee hai roz apanee khuddaaree,
Roz zindagee hamase too-tadaak karatee hai...!