जब्त से काम लिया दिल ने तो क्या फक्र करूँ

जब्त से काम लिया दिल ने तो क्या फक्र करूँ

जब्त से काम लिया दिल ने तो क्या फक्र करूँ,
इसमें क्या इश्क की इज्ज़त थी कि रुसवा न हुआ,
वक्त फिर ऐसा भी आया कि उससे मिलते हुए,
कोई आँसू भी ना गिरा कोई तमाशा ना हुआ।


Zabt Se Kaam Liya Dil Ne Toh Kya Faqr Karoon,
Ismein Kya Ishq Ki Izzat Thi Ke Ruswaa Na Hua,
Waqt Phir Aisa Bhi Aaya Ke UsSe Milte Huye,
Koi Aansoo Bhi Na Gira Koi Tamasha Na Hua.