जब मुकद्दर ही नहीं था अपना

जब मुकद्दर ही नहीं था अपना

जब मुकद्दर ही नहीं था अपना,
देता भी तो भला क्या देता कोई।


Jab Muqaddar Hi Nahi Tha Apna,
Deta Bhi Toh Bhala Kya Deta Koyi,