इक टूटी-सी ज़िंदगी को समेटने की चाहत थी Admin / Jul 22, 2021 इक टूटी-सी ज़िंदगी को समेटने की चाहत थी इक टूटी-सी ज़िंदगी को समेटने की चाहत थी, न खबर थी उन टुकड़ों को ही बिखेर बैठेंगे हम। Ek Tooti Si Zindagi Ko Sametne Ki Chahat Thi, Na Khabar Thi Unn Tukdon Ko Hi Bikher Baithhenge. Shayari Zindagi Shayari