आँखें की छत पे टहलते रहे काले साये

आँखें की छत पे टहलते रहे काले साये

आँखें की छत पे टहलते रहे काले साये,
कोई पहले में उजाले भरने नहीं आया…!
कितनी दिवाली गयी, कितने दशहरे बीते,
इन मुंडेरों पर कोई दीप न धरने आया !!


Aankhen kee chhat pe tahalate rahe kaale saaye,
Koee pahale mein ujaale bharane nahin aaya…!
Kitanee divaalee gayee, kitane dashahare beete,
In munderon par koee deep na dharane aaya !!